फिर इक रोटी और दो बूंद पानी का दाम ये पैसा चुका ना पाएगा, फिर तिरस्कृत और अक्षम्य मनुष फिर इक रोटी और दो बूंद पानी का दाम ये पैसा चुका ना पाएगा, फिर तिरस्कृत और अक्...
रही अडिग सत्य पथ पर तो निश्चय ही स्वयंसिद्धा कहलाओगी। रही अडिग सत्य पथ पर तो निश्चय ही स्वयंसिद्धा कहलाओगी।
समय मुट्ठी की रेत सा फिसलता जा रहा है , हर लम्हा यूँ ही गुजरता जा रहा है, समय मुट्ठी की रेत सा फिसलता जा रहा है , हर लम्हा यूँ ही गुजरता जा रहा है,
धुम्रपान में सब धुआं धुआं धुआं हो जाएगा। धुम्रपान में सब धुआं धुआं धुआं हो जाएगा।
आ भी जाओ अभी मिलने को जान तड़पती है। आ भी जाओ अभी मिलने को जान तड़पती है।
नाम चराग हो गया। नाम चराग हो गया।